गाँव के लोग बहुत ख़ुशहाल थे। आपस में सदभाव था। राजा साहब अपनी प्रजा का बहुत ख़्याल रखते थे। गाँव वालों के घर जब भी सुख हो या दुःख हमेशा एक चाँदी के थाल में रख कर उनकी जूती अवश्य उपस्थित रहती। उनका मानना था कि सुख में उनका उपस्थित होने से उत्सव का महत्त्व कम हो जाता है और लोगों का सारा ध्यान उनके ऊपर केन्द्रित हो जायेगा तथा दुःख में जाने से किसी का दुःख कम न होगा उल्टा अपना शोक भूल कर उनकी आवभगत करनी होगी।
वक़्त आगे बढ़ता रहा। राजमहल में शोक हुआ। राजमाता का गुज़र जाना राजा साहब सहन न कर पा रहे थे। राजपरिवार में और किसी के न होने से अकेले पड़ गए थे।
अंतिम यात्रा की तैयारी पूरी हो चुकी थी। सदर फाटक खोला गया।
ओह !!! ये क्या !!!
फाटक से लेकर जिधर भी नज़र जाती सारे रास्ते पर कपड़े से ढ़की हुई थालियाँ रखी थी जिनके अन्दर जूतियाँ थी .......