Friday 30 June 2017

कुछ दिनों से देख रही थी
कुछ विशेष प्रिय
अपने पुराने पौधों को
विरक्ति का भाव था जैसे
उनमें समाया ।

छुईमुई का पौधा जो
ऊँगली दिखाते ही
त्वरित गति से
शर्म से गुलाबी हो
अपने आपको समेट लेता था , अब
वह सिर्फ मुंह मोड़ लेता है जग से ।

बेले की बेशुमार कलियाँ
मिलकर जूही के सितारों के संग
मुस्कुरा कर पास बुलाती थीं , पर
आजकल खिलने से पहले ही
न जाने क्यों
मुरझा जाती थीं ।

आज सुबह पूरे उपवन का
नज़ारा ही बदला हुआ था ....
वर्षों से ठूठ-सा खड़ा
बरगद का पेड़
धीमे-धीमे मुस्कुरा रहा था ,
सुन्दर , सलोनी
चमकीली
दो कोमल हरी पत्तियां
उसके बेजान तने की
फुनगी पर झांक रही थीं ।

आज बेला अपने
पूरे शबाब पर था ,
जूही ने तो जैसे बाजी ही जीत ली हो
असंख्य सितारों की तरह
झिलमिला रही थी ,
छुईमुई का तो आज
अंदाज़ ही निराला था , वह
देखते ही झट
अपने आप में शर्मा के छिप गया ।

आज पूरी बगिया
मुस्कुरा रही थी
गा रही थी
एक नई सरगम
एक नया गीत .........

वापसी सुखद भी होती है। ब्लॉग पर वापस लौटना सुकून दे रहा है। जीवन की आपाधापी में एक कोना अपने लिए भी होना ही चाहिए। कभी ख़ुद से तो कभी दोस्तों से बतकही मन के खालीपन को गुलज़ार करती है।

मिलेंगें हम 😊

नीता मेहरोत्रा 

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